29 साल बाद भी जख्म ताजा लगते हैं, बसने से पहले न्याय चाहते हैं कश्मीरी पंडित

डीबी ओरिजिनल डेस्क. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 के हटने के बाद से ही कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की चर्चा भी जोरों पर है। हाल ही मेंकश्मीरी पंडितों के एक समूह ने जम्मू-कश्मीर के दौरे के लिए सरकार से इजाजत मांगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी, गृहमंत्री अमित शाह और जम्मू एवं कश्मीर प्रशासन को लिखे पत्र में कश्मीरी पंडित सतीश महलदार और उनकी टीम ने कहा किहमाराप्रतिनिधिमंडल कश्मीर जाना चाहता है।
तीन दशक पहले 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार शुरू हुआ था। खौफनाक आतंकवाद की वजह से कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन के लिए मजबूर हो गए थे। उन्हें घर से बेदखल हुए29 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं।अनुच्छेद-370 के खत्म होने पर कश्मीरी पंडितों ने अलग-अलग जगह जश्न मनाया। प्रवासी कश्मीरी पंडितों के संगठन ग्लोबल कश्मीरी पंडित डायस्पोरा का मानना है कि अनुच्छेद-370 को खत्म कर सरकार ने राष्ट्रीय, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप सेभारत को एकजुट कर दिया है।
बदले हालातमेंदैनिक भास्कर न्यूज ऐप ने 'रूट्स इन कश्मीर' के संस्थापक सुशील पंडित, जानेमाने फिल्मकार अशोक पंडित,जम्मू-कश्मीर विचार मंच के पूर्व महामंत्री मनोज भान,जम्मू और कश्मीरके एमएलसी सुरेंद्र अम्बरदार से बात कर जाना कि आखिर अब कश्मीरी पंडितो के दिल में क्या है?साथ हीअभिनेता अनुपम खेर और राज्यपाल सत्यपाल मलिक के विचार।
दोषियों को फांसी मिले, अब कचरा साफ होना चाहिए : 'रूट्स इन कश्मीर' के संस्थापक सुशील पंडित
- सुशील पंडित का कहना है कि सरकार का बहु-प्रतीक्षित फैसला है। हालांकि देश ने बहुत समय लगा दिया लेकिन फिर भी एक साहसिक फैसला लिया, जिसके लिएपूरा देश सरकार को बधाई दे रहा है। अब सबसे पहले जिहाद से उस शिकंजे को ढीला करना है, जो 70 साल से 370 के कारण कश्मीर पर कसा था और ये तब ढीला होगा जब इन जिहादियों को, इनके आकाओंको अपने अपराधों की सजा मिलेगी।
- इन्होंने कश्मीर में जातिसंहार किया। पूरे के पूरे समुदाय को मारकर, लूटकर, यातना देकर भगा दिया और आज तक किसी को भी किसी भी अपराध की सजा तो दूर उस पर मुकदमा चलकर उसका दोष भी सिद्ध नहीं हुआ है उल्टा उन्हें नेता बना दिया गया है। वो कश्मीर के भविष्य के निर्णायक की भूमिका में आ गए हैं। चाहे वो यासीन मलिक हो, गिलानी हो, शब्बीर शाह हों। इन लोगों ने कश्मीर पर जिहाद लाद दिया। जघन्य अपराध किए। बलात्कार किए। मंदिर तोड़े। अपहरण किए। घर तोड़े। इनको अभी तक अपने किए की सजा नहीं मिली है। अब यह जरूरी है कि इन पर भी वैसी ही कड़ी कार्रवाई हो, जैसे कि बांग्लादेश में 1971 के युद्ध अपराधियों को बीते सालों में हुई है।
- सुधीर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में 370 और 35-ए ने एक ऐसीमानसिकता पनपाई थी, जोइस्लामिक स्टेटको बढ़ावा देती थी ।कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य ही नहीं था, लेकिन वह एक मुस्लिम राज्य हो गया था और यह उनके भेदभाव में, नीतियों में, प्रशासन में साफ दिखता था। अब इसे समाप्त करना और उसके स्थान पर एक न्यायपूर्णव्यवस्था लागू करना होगी। एक उत्तरदायी प्रशासन बनाना होगा,जो भेदभाव रहित हो। जो सही मायने में लोकतांत्रिक, संवैधानिक हो, नैतिक हो। हर नागरिक को बराबर समझने की व्यवस्था बने।
- यह जो मुस्लिम स्टेट की व्यवस्था है इसने वहां की शिक्षा का मदरसीकरण कर दिया था। इसके कारण वहां पीढ़ी दर पीढ़ी जहर भरे दिमाग पनपाए गए और जिनके बूते जिहाद फैलाया जाता था। इन्हें हटाना होगा। पाठ्यक्रम भी बदलना होगा। बुरहान वानी के पिता जैसे शिक्षकोंने अपने बेटे को क्या बनाया, सब जानते हैं, ऐसे में इन्होंने दूसरे बच्चों के साथ क्या किया होगा, आप अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसे लोगों को व्यवस्था से बाहर निकालना होगा।
- कश्मीरी पंडितों को दोबारा स्थापित करना ही सरकार की अग्निपरीक्षा होगी। यही सफलता का सबसे बड़ा पैमाना होगा। सरकार को कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा का आभास कराना होगी। जिहादियों को सत्ता से दूर करके फांसी पर लटकाना होगा। तभी सही मायने में न्याय होगा। दोषियों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए जो नजीर बन जाए। हालांकि अभी कश्मीर में स्थिति सामान्य होने में समय लगेगा। ऐसा सुनने में आया है कि जो अलगाववादी पहले से कश्मीर में सक्रिय रहे हैं, उन्हीं सेफिर बातचीत शुरू कर दी गई है। फिर उन्हें ही सत्ता सौंपने की तैयारी है। सरकार को इस शॉर्टकट से बचना चाहिए, वरना पूरे किए पर पानी फिर जाएगा।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक अखंड भारत अब कहावत नहीं, वास्तविकता है :अनुपम खेर
- 15 अगस्त के मौके पर अभिनेता अनुपम खेर ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए कहा थाकि, 'आज से 72 साल पहले हमारे पूर्वजों ने अपने प्राणों की आहूति देकर हमें आजादी दिलाई थी। इस साल हमारी आजादी पूरी हुईहै। हमारा देश कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक है, अब ये कहावत नहीं, वास्तविकता है। मैं एक कश्मीरी पंडित हूं। हमने बहुत दुख झेले हैं। अपने देश में सालों से रिफ्यूजी बनकर रहे हैं हम और अब सबकुछ भूलकर अपने जख्मों को भरकर आगे बढ़ने का वक्त आ गया है। मैं जानता हूं कुछ लोग हमारे और मुस्लिम बिरादरी के भाई-बहनों के जख्मों को जिंदा रखना चाहते हैं। ये उनका धंधा है। अब इन्हें इग्नोर करें। अब कश्मीर औरपूरे देश को प्रकृति के शिखर तक ले जाने का प्रयास करते हैं।
सभी को समझना होगा कि अब कश्मीर में हिंदुस्तान की ही चलेगी : फिल्मकार अशोक पंडित
- फिल्मकार अशोक पंडित कहते हैं कि, कश्मीरी हिंदू का जो इश्यू है, वही इश्यूकश्मीर का है, बाकी कश्मीर का कोई इश्यू नहीं है। अभी सफाई की एक प्रॉसेस शुरू हो चुकी है। हमारी पहली उम्मीद सरकार से ये है कि, जिन-जिन लोगों ने हमारे बलात्कार किए, हम पर बर्बरता की, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होना चाहिए। केस दर्ज होना चाहिए। कानूनी रास्ते से इन्हें जेल में डालना चाहिए। इन लोगों ने सिर्फ हिंदुओं को नहीं मारा बल्कि सिक्योरिटी फोर्सेज की जो हत्याएं हुईं हैं, कश्मीरी मुसलमानों की जो हत्याएं हुई हैं, बलात्कार हुए, मंदिर तोड़े गए, ऐसा करने वाले सबके खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए। 30 साल के निर्वास से हम बहुत कुछ सीख चुके हैं। दुनिया को परख चुके हैं। 370 हमारी बहुत बड़ी जीत है। कश्मीरी हिंदुओं की वजह से ही हिंदुस्तान का अक्स कश्मीर में था और हमें ही खत्म कर दिया गया। अब ऐसा करने वालों को कानून का पाठ पढ़ाया जाना बहुत जरूरी है।
- हमारी वापसी के लिए ये बहुत जरूरी है कि सरकार कश्मीरी हिंदुओं को चर्चा में शामिल करे। हमारी लीडरशिप से सलाह-मशविरा किया जाए, क्योंकि सबसे बड़े पीड़ित तो हम ही हैं। हमारी वापसी के लिए सरकार को एकरणनीति बनाना पड़ेगी, क्योंकि हम अंबानी-अडानी नहीं हैं, जो वहां जमीन खरीदकर बिजनेस शुरू कर देंगे। हमें हमारी प्रॉपर्टी वापस चाहिए। हमारे घर जला दिए गए। खेत-खलिहान पर कब्जा कर लिया। जबर्दस्ती कागजों पर साइन करवा लिए गए।
- हमारा अस्तित्व मिटाने की कोशिश हुई। मंदिर तोड़ दिए गए। हमें मारकर भगाया गया। हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे पीएम और होम मिनिस्टर इस दिशा में सोच रहे हैं। अभी लड़ाई शुरू हुई है, ये अंजाम तक उसी दिन पहुंचेगी, जब हम सुरक्षित कश्मीर में बस जाएंगे। इससे पूरे वर्ल्ड में मैसेज जाएगा कि कश्मीरी हिंदू रिटर्न आ गए हैं। वे कहते हैं कि 70 साल का मलबा 70 दिन में साफ नहीं हो सकता। हमें वहां की मानसिकता बदलनी होगी। लोकल लीडरशिप को यह मैसेज देना होगा कि अब यहां गुंडागर्दी नहीं चलेगी। घर से पत्थर फेंकना नहीं चलेगा। हिंदुस्तानी विरोधी नारे लगाना नहीं चलेगा। बताना होगा कि अब कश्मीर में हिंदुस्तान की पूरी प्रेजेंस है।
हम टूरिस्ट की तरह कश्मीर में बसना नहीं चाहते : मनोज भान
- मनोज भान का कहना है कि, अनुच्छेद-370 का हटना एक ऐतिहासिक कदम है। इससे तो पूरे देश को खुशी मिली है लेकिन कश्मीरी पंडितों का जम्मू-कश्मीर में बसना और अनुच्छेद-370 का हटना दो अलग-अलग मुद्दे हैं। वे कहते हैं कि अब हम टूरिस्ट की तरह कश्मीर नहीं जाना चाहते बल्कि हमें हमारा हक मिलना चाहिए। हमें वहां की स्थायी नागरिकता मिले। हम सरकार से वन प्लेस सेटलमेंट करना चाहते हैं। 1990 के दशक में चार से पांच लाख कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ना पड़ा था, अब ये सभी अपने घर वापिस जाना चाहते हैं।
- वे कहते हैं कि, सरकार सैटेलाइट टाउन में सभी कश्मीरी पंडितों को एक साथ बसा सकती है। यहां सिक्योरिटी के साथ दूसरी मूलभूत जरूरतें भी उपलब्ध होनी चाहिए। भान के मुताबिक, पिछले तीस साल में कश्मीरी पंडितों ने देश-दुनिया में अपना नाम कमाया है। पहचान बनाई है। ऐसे में यदि हमें कश्मीर में बसाया जाता है तो रोजगार से जुड़े प्रबंध हम खुद कर सकते हैं। इससे इकोनॉमी में मजबूती आएगी।
एमएलसी सुरेंद्र अम्बरदार बोले-सब जाना चाहते हैं दोबारा अपने घर
- जम्मू और कश्मीर एमएलसी सुरेंद्र अम्बरदार का कहना है कि, कश्मीरी पंडित बस अब यही चाहते हैं कि सरकार उन्हें आदरपूर्वक कश्मीर में दोबारा बसा दे। वे कहते हैं कि करीब 7 लाख विस्थापित कश्मीरी पंडित हैं, जो दोबारा अपनी जमीन पर जाना चाहते हैं। सरकार ऐसा प्रोजेक्ट लाए जिससे कश्मीरी पंडितों को घर, रोजगार और सुरक्षा मिले। वे कहते हैं कि सभी कश्मीरी पंडित वापिस घाटी में बसना चाहते हैं बस अब नई व्यवस्था का इंतजार है। सुरेंद्र अम्बरदार के मुताबिक, 31 अक्टूबर के बाद से ही नई चीजें घाटी में दिखना शुरू हो जाएंगी। नई व्यवस्था बनते ही कश्मीरी पंडितों के वहां बसने का रास्ता भी खुल जाएगा।
कैसे टूटा था कश्मीरी पंडितों पर कहर...
- कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित 'जमात-ए-इस्लामी' ने शुरू किया था। जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो। इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए।
300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या
- घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की।
सरेआम दुष्कर्म हुए
- घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों काअपहरण किया। हालात दिन बदिन बदतर होते चलेगए।
- एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब-उल - मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं'। एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया। मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो।
- कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया। इस सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों-रात अपना सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए।
कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार
- डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।
- संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया।
- वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला।
- प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था।
- 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी।
- 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी।
- 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें 11 लोगों की मौत।
- 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला 30 मार्च और दूसरा 24 नवंबर को। इन दोनों हमलों में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
- 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था।
- 2003 नदिमार्ग नरसंहार, पुलवामा जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने 24 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था।
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