Wednesday, October 2, 2019

गांधीबापू के सत्य-अहिंसा के दर्शन में दिखता है उनका विश्वमानुष होना

भगवान वेद ने जो एक शब्द दिया है, विनोबाजी ने उसे लेकर विस्तार से बात की है। कहा है कि विश्व में एक विश्वमानुष होना चाहिए। हम कितने छोटे-छोटे मनुष्य हैं! हम कितने अलग-अलग हिस्सों में बंटे हुए हैं। जरा भी अतिशयोक्ति किए बिना कहूं तो गांधीबापू विश्वमानुष हैं। विनोबाजी ने यह भी कहा है कि तुलसीदास, पैगंबर साहब, जगद् गुरु शंकराचार्य भी विश्वमानुष हैं। वेद शब्द के सहारे विनोबाजी विश्वमानुष की बात करते हैं। तो विश्वमानुष की परिभाषा क्या है? गांधीजी के दर्शन में जो दिखता है, उसका सहारा लेकर विश्वमानुष की पहचान की जा सकती है। बापू की विश्वमानुषों में गणना करें तो विश्वमानुष के लक्षणों की सूची लंबी हो सकती है। खैर, बापू के विराट व्यक्तित्व के सिर्फ 4 लक्षणों को चुनें तो पहला है- निस्पृहता (लालसा का अभाव)। दूसरा है- जवान किसान। तीसरा है- संवेदना से भरपूर वैज्ञानिक और चौथा- सत्य और अहिंसा।


निस्पृहता: ब्रिटेन यात्रा का प्रसंग है। बापू जॉर्ज पंचम के सामने बैठे थे। चर्चिल को यह अच्छा नहीं लगा, क्योंकि यह प्रोटोकॉल के विरुद्ध था कि गांधीजी आम भारतीय परिधान में थे। धोती और कंधे पर एक कपड़ा था। एक बच्चे ने बापू से पूछा- आपके पास कुर्ता नहीं है? मैं मां से कहूं कि वे आपके लिए कुर्ता सिल दें। बापू ने कहा- धन्यवाद बेटा, लेकिन आपकी माताजी कितने कुर्ते सिलेंगी? मुझे तो 40 करोड़ कुर्ते चाहिए। मेरे देश के 40 करोड़ लोगों के शरीर पर कपड़े नहीं हैं। आपकी माताजी यदि इतने कुर्ते दे सकती हैं तो मैं कुर्ता पहन सकता हूं। गांधीजी में ऐसी त्याग भावना थी। बापू एक सम्राट के सम्मुख भी वैराग्य वृत्ति और निस्पृहता में रचे बसे थे।


जवान किसान: गांधीबापू जवान किसान हैं। हमारे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्रीजी (जिनका जन्मदिन भी 2 अक्टूबर है) ने नारा दिया था- ‘जय जवान, जय किसान’। विनोबाजी ने कहा है कि पृथ्वी पर क्षत्रिय किसान, ब्राह्मण किसान होना चाहिए। वन्यजाति को किसान होना चाहिए। ‘युवास्यात् साधु, युवास्यात् अध्यापक:’ अर्थात साधु बूढ़ा नहीं होना चाहिए। शरीर की बात अलग है, विचारों से बूढ़ा नहीं होना चाहिए। मुझे हमेशा बापू जवान किसान ही दिखे हैं। मैं जिम्मेदारी से कहता हूं कि यही गांधीजी की विश्व मानुषता का दूसरा प्रबल पक्ष है।


संवेदना से भरपूर वैज्ञानिक: बापू ने सात सामाजिक पाप बताए हैं। कहा है कि संवेदनाशून्य विज्ञान सामाजिक पाप है। गांधीजी के रूप में हमें एक संवेदनायुक्त वैज्ञानिक मिला। वे जड़ पदार्थ के शोधकर्ता वैज्ञानिक नहीं थे, वे चिद् विलास वैज्ञानिक थे। आप बापू के प्रयोगों को देखिए। उनकी आत्मकथा का भी नाम है-‘सत्य के प्रयोग’। मेरी समझ के अनुसार गांधीजी ने चिद् विलास की चेष्टा की। इसलिए ही वे विश्वमानुष हैं। इस मानव ने स्वास्थ्य, शिक्षा को लेकर प्रयोग किए। बेरोजगारी निवारण के लिए प्रयोग किए। ग्राम स्वराज्य-ग्रामोद्योग-सर्वोदय के प्रयोग किए। तो गांधी हैं विश्वमानुष। उन्होंने हर जगह, हर धर्म से शुभ-शुभ तत्व लिया। फिर भी कहा कि सनातन हिंदू होने का मुझे गर्व है। वे ऐसी निर्भीक घोषणा करते हैं कि सबको खुद पर गौरव होना चाहिए, लेकिन कभी संकीर्ण नहीं बनना चाहिए। ‘एकम सत’ की हमारी परंपरा है। ‘आ नो भद्रा क्रतवो ....’ शुभ विचार जहां से मिले, वहां से ले लो- इस्लाम से, सनातन धर्म से, ईसाईयत से, जैन से, बौद्ध धर्म से। नीतिवान होना खराब नहीं है, लेकिन विशेषजाति वाला दूसरे को निम्नतर समझे इससे जघन्य अधर्म दूसरा हो नहीं सकता।


सत्य और अहिंसा: बापू ने कहा ही है सत्य ही मेरा धर्म है। सत्य को प्राप्त होने का मेरा मार्ग है अहिंसा। अहिंसा से ही मैं सत्य तक पहुंचता हूं। सत्य और अहिंसा के इतने स्पष्टव्रत का यह पथ बापू को विश्वमानुष बना देता है। जितना हो सके सत्य का निर्वाह करना चाहिए। विचार का सत्य, बोलने का सत्य और आचरण का सत्य; यह भगवान शिव का त्रिपुंड है। गांधीजी का सत्य विचार-बोल और आचरण का सत्य है। विश्व कल्याण करने वाले शिवतत्व का यह त्रिपुंड है। लोग कहते हैं सत्य कटु होता है। मैं इस मत का नहीं हूं। सत्य मधुर होता है। ‘सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् ....’ अर्थात सत्य और प्रिय बोलना चाहिए। गांधीजी की विश्व मानुषता का शिखर प्रमाण है- सत्य और अहिंसा। गांधीजी ने जो 11 व्रत बताए हैं उनका आरंभ सत्य-अहिंसा से होता है। चोरी न करना और अपरिग्रह भी इनमें शामिल हंै। थाली में 11 पकवान परोसे गए हों- उन सबका सेवन करना संभव नहीं है। इनमें से चार-पांच भी ग्रहण करते हैं पेट भर जाता है। इसी तरह गांधीजी के एकादश व्रत में से हम जितने भी सत्य के नजदीक जाएंगे उतनी अधिक निर्भयता प्राप्त होगी, इसलिए गांधीजी को विश्वमानुष कहना ही पड़ेगा।

जितना हो सके जीवन में सत्य का निर्वाह करना चाहिए
बापू ने कहा ही है- सत्य ही मेरा धर्म है। सत्य को प्राप्त होने का मेरा मार्ग है अहिंसा। अहिंसा से ही मैं सत्य तक पहुंचता हूं। सत्य और अहिंसा के इतने स्पष्टव्रत का ये पथ बापू को विश्व-मानुष बना देता है। जितना हो सके सत्य का निर्वाह करना चाहिए।



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