
डीबी ओरिजिनल डेस्क. अयोध्या मामले में 40 दिन चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुप्रीमकोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान भारत में आर्यों का अस्तित्वफिर से चर्चा में आया। सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकार के वकील के पाराशरण ने कहा किएक के बाद एक आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया। आर्य यहां के मूल निवासी थे, क्योंकि रामायण में भी सीता अपने पति श्रीराम को आर्य कहकर संबोधित करती हैं। ऐसे में आर्य कैसे बाहरी आक्रमणकारी हो सकते हैं?
कुछ ही दिनों पहले डेक्कन कॉलेज पुणे के इतिहासकारों ने मानव कंकालों पर किए गए शोध के नतीजे घोषित किए थे। ये मानव कंकाल हरियाणा केराखीगढ़ी में खुदाई में मिले थे। राखीगढ़ी सिंधु सभ्यता के मुख्य स्थान में से एक रहाहै। शोध के मुताबिक, दक्षिण एशिया के लोगों का खून एक ही है। हड़प्पा में रहने वाले बाहर से नहीं आए थे, बल्कि ये यहीं के वाशिंदे थे। इन्होंने ही वेदों-उपनिषदों की रचना की।इन्हें ही आर्य के नाम से भी जाना जाता है। यही लोग बाद में मध्य एशिया की ओर गए। उनका दावा है कि अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन एक ही वंश के थे।इस शोधकार्य को देश-विदेश के 30 वैज्ञानिकों की टीम ने अंजाम दिया था। इनमें डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति और इस प्रोजेक्ट के मुखिया डॉ वसंत शिंदे और बीरबल साहनी पुराविज्ञानी संस्थान, लखनऊ के डॉ. नीरज राय (डीएनए वैज्ञानिक) भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट में कही गई बात और मानव कंकालों पर किए गए शोध के बाद दैनिक भास्कर APP ने शोधकरने वालेदोनों वैज्ञानिकों से बात कर जाना कि आखिर आर्यों को लेकर उनकीपूरी थ्योरी क्या है। इस शोध को प्रतिष्ठित शोध पत्रिका सेल में प्रकाशित किया गया है। जिसका शीर्षक है ‘एन एनोसेंट हड़प्पन जीनोम लैक्स एनसेस्ट्री फ्रॉम स्टेपे पेस्टोरेलिस्ट और ईरानी फार्मर्स'।
आर्यों को लेकर गलतफहमी- डॉ. वसंत शिंदे
‘‘काफी विद्वानों का मत है कि आर्य बाहर से भारत आए थे। कुछ ये भी कहते हैं कि वे हड़प्पा सभ्यता के बाद यहां आए। कुछ का कहना है कि उन्होंने यहां रहने वालों पर हमला किया और अतिक्रमण कर दिया। कुछ का मानना है कि उत्तर भारतीयों पर हमला करके आर्यों ने उन्हें दक्षिण भेज दिया। हालांकि, ये सभी अवैज्ञानिक प्रमाण हैं। अलग-अलग वैज्ञानिकों की अलग-अलग थ्योरी है, लेकिन अपनी बातों को लेकर वैज्ञानिक प्रमाण देने में कोई भी सफल नहीं रहा। हम वैज्ञानिक तथ्यों के साथ यह दावा कर रहे हैं कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए बल्कि वे भारतीय उपमहाद्वीप में ही निवास करते थे। यहीं उन्होंने धीरे-धीरे प्रगति की। जीवन को उन्नत बनाया और फिर इधर-उधर फैल गए।’’
आप यह दावा किन प्रमाणों के आधार पर कर रहे हैं?
‘‘हमारा अध्ययन आर्कियोलॉजिकल डाटा और जेनेटिक पर आधारित है। आर्कियोलॉजिकल शोध से पता चला कि शुरुआत ईसा पूर्व 7 हजार के आसपास हुई। वहां से हड़प्पा सभ्यता तक एक विकास पाते हैं। शुरुआत में काफी चीजें बनीं। धीरे-धीरे जीवन स्थिरता की ओर बढ़ना शुरू हुआ। विकास शुरू हुआ। हड़प्पा सभ्यता की शुरुआत ईसा पूर्व साढ़े पांच हजार के आसपास हुई। यानी करीब डेढ़ हजार सालों में काफी कुछ विकसित हुआ। उन्नत हुआ। आर्कियोलॉजिकल डाटा को बनाने में जो अवशेष मिले हैं, उनका अध्ययन किया गया है। इसमें औजार, गहने, अलग-अलग क्राफ्ट मिलते हैं। क्राफ्ट में एक प्रगति मिलती है। हड़प्पा सभ्यता के समयइन लोगों ने विकास किया। उनके काम में परफेक्शन आया।’’
‘‘हमारा दूसरा अध्ययन जेनेटिक डाटा को लेकर है। ईसा पूर्व 2500 के आसपास के कंकाल हैं। राखीगढ़ी जो हड़प्पा सभ्यता के एक प्रमुख स्थानों में से एक रहा है, वहां से 2015-16 में हमें खुदाई में 40 कंकाल मिले। इनमें से जलवायु के चलते अधिकतर कुछ काम के नहीं निकले लेकिए एक कंकाल काम का था। यह किसी महिला का था। कंकाल के जीन का हमने परीक्षण किया। जब इस जीन की तुलना दूसरे समकालीन लोगों के जीन से की गई तो दोनों एकदम अलग निकले। शोध में किसी भी मध्य एशिया के पूर्वजों के डीएनए का मिलान नहीं हुआ। इससे पता चलता है कि राखीगढ़ी के रहने वाले लोगों का मध्य एशिया के लोगों से कोई संबंध नहीं है जबकि अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन से मिलान करने पर पता चला कि यह एक ही वंश के हैं। इससे साबित होता है कि आर्य भारत के ही थे, और हम आर्यों के ही वंशज हैं।’’
आर्यों के बड़े पैमाने पर बाहर से आने के प्रमाण मिलते हैं?
‘‘अध्ययन में सामने आया है कि, आर्यों ने जीवन में स्थिरता लाने के लिए खेती की शुरूआत की। इसी के बाद अलग-अलग देशों से उनके व्यापारिक संबंध बनना शुरू हुए। वे दूसरे देशों में व्यापार के लिए जाने लगे और दूसरे देश के लोग भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापार के लिए आने लगे। ईरान, मध्य एशिया से उनके व्यापारिक संबंध थे। आर्यों का विदेशियों से मिलाप तो हुआ लेकिन वंश नहीं बदला। लोग आपस में मिलने लगे। थोड़े से जीन आ गए लेकिन वंश नहीं बदला। ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिलते कि आर्य बड़े पैमाने पर बाहर से आए हों।’’
हड़प्पा सभ्यता खत्म क्यों हुई?
‘‘हड़प्पा सभ्यता के खत्म होने का कारण जलवायु परिवर्तन रहा। 2,000 ईसा-पूर्व के आसपास पर्यावरण शुष्क होने लगा। इससे सिर्फ हड़प्पा ही नहीं बल्कि मिस्र, मेसोपोटामिया की तत्कालीन सभ्यताओं का भी पतन हुआ। वहां बहने वाली सरस्वती सूखने लगी। इसी कारण सूखे की समस्या खड़ी हुई और लोगों ने वहां से निकलना शुरू कर दिया। हमें मॉडर्न पॉपुलेशन के डीएनए बताते हैं कि सबके डीएनए हड़प्पन जीन से मिलते हैं। उन्नति करने पर वे शिकार से कृषि की ओर बढ़े। वे सिंधु और सरस्वती नदी के आसपास बसे थे।’’
अध्ययन में कौन-कौन शामिल रहा?
डॉ. शिंदे के मुताबिक- हमने अपना अध्ययन वर्ष 2008-2009 में शुरू किया था। भारत के साथ ही इसमें 16 देशों के वैज्ञानिकों को शामिल किया गया। पहले हमने फरमाना में अध्ययन किया। वहां सफलता नहीं मिलने पर राखीगढ़ी में अध्ययन शुरू किया। खुदाई में 40 कंकाल प्राप्त हुए। इन्हीं में से एक पर अध्ययन किया गया। हमने शुरुआती सैम्पल्स की जांच हैदराबाद स्थित लैब में करवाई। इसके बाद अध्ययन को ओर ज्यादा प्रमाणित करने के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक को भी इसमें शामिल किया। वहां की उन्नत लैब में भी डीएनए सैम्पल का अध्ययन किया गया। दोनों जगह नतीजे एक ही आए।
हमारे लोगों में आज भी है हड़प्पावासियों वाला जीन : डॉ राय
- डीएनए साइंटिस्ट डॉ. नीरज राय ने दैनिक भास्कर मोबाइल APP से बातचीत करते हुए कहा किहमने हड़प्पा के एक प्राचीन जीनसमूह का मिलान सेंट्रल एशिया, मिडिल ईस्ट, ईस्टर्न यूरोप, वेस्टर्न यूरोप आदि के लोगों से कराया लेकिन मिलान नहीं हुआ। वहीं देश के अलग-अलग हिस्सों से करीब 2500 लोगों के ब्लड सैंपल लेकर उनका डीएनए और राखीगढ़ी में मिले मानव कंकाल के डीएनए का मिलान किया तो पाया कि आज भी उनका और हमारा डीएनए मेल खाता है। डॉ राय के मुताबिक, इससे ये साबित होता है कि हड़प्पावासी कहीं बाहर से नहीं आए थे बल्कि हमारे ही देश के मूलनिवासी थे।
- ‘‘उन्होंने ही खेती की खोज की। इन्हीं के समय वेद भी लिखे गए। अब यदि कोई आर्य शब्द जैसा टर्म इस्तेमाल करता है तो हम कह सकते हैं कि यही आर्य थे। डॉ राय के मुताबिक, हम ऐसा मानते हैं कि डीएनए की डायवर्सिटी जहां ज्यादा होती है, वहां से लोग कम डायवर्सिटी की ओर जाते हैं। शोध में राखीगढ़ी में रहने वालों लोगों के डीएनए में डायवर्सिटी ज्यादा मिली। इससे ये पता चलता है कि यहां के लोग विदेशों में गए न कि वहां के लोग यहां आकर बसे। वे कहते हैं कि, 1500 बीसी से पहले तक मिक्सिंग नहीं हुई है। 1000 से 1500 बीसी के बीच वाले 500 सालों में काफी मिक्सिंग के साक्ष्य मिलते हैं।’’
बड़ी संख्या में हुआ आबादी का पलायन: टोनी जोसेफ
- 'अर्ली इंडियंस : द स्टोरी ऑफ आउर ऐन्सेस्टर्ज़ एंड वेर वी केम फ्रॉम' के लेखक टोनी जोसेफ ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा किनिष्कर्ष सिर्फ यह बताते हैं कि हड़प्पा के निवासियों के प्राचीन डीएनए में आर्य वंश का कोई संकेत नहीं है। इससे पता चलता है कि आर्य हड़प्पा सभ्यता के समय मौजूद नहीं थे। वे इसके बाद भारत आए। क्या अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए आर्य सिद्धांत इस्तेमाल किया गया? इस सवाल पर वे कहते हैं कि बिल्कुल नहीं। बल्किमामला इसके विपरीत है। आर्य प्रवास थ्योरी के मुताबिक, आर्य हड़प्पा सभ्यता के अंत में पहुंचे। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत अपने समय की सबसे बड़ी सभ्यता था। क्षेत्रफल और जनसंख्या दोनों ही लिहाज से। आर्यों के आने से पहले! इसलिए यह कहना कि अंग्रेजों ने आर्य प्रवास की थ्योरी भारत को विकृत करने के लिए दी, यह गलत है।
- वे कहते हैं कि नए जेनेटिक प्रमाण बताते हैं कि यूरोप और दक्षिण एशिया दोनों में ही मध्य एशिया से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था। जिन्होंने उनकी जनसांख्यिकी को प्रभावित किया। वे कहते हैं कि आज दुनिया की सभी बड़ी आबादी जैसे, यूरोपीय, अमेरिकी, पूर्वी एशियाई, पश्चिम एशियाई सभी प्रागैतिहासिक काल में बड़े स्तर पर हुए पलायन का ही परिणाम हैं। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक, चौंकाने वाला या अनोखा नहीं है। भारतीय आबादी भी प्रागैतिहासिक काल में हुए बड़े पलायन का ही परिणाम है। वास्तव में ऐसा नहीं है तो यह आश्चर्य की बात होगी!
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2IWZwI7
via IFTTT
0 comments:
Post a Comment