Tuesday, October 22, 2019

शिवकाशी में इस बार 98% पटाखे पुराने तरीके से ही बन रहे हैं, 2 हजार में से सिर्फ 4 के पास ग्रीन पटाखे बनाने का लाइसेंस

शिवकाशी (मनीषा भल्ला).तमिलनाडु के मदुरई से कन्याकुमारी जाते हुए एनएच-47 पर शिवकाशी कस्बा है। निरंतर चलने वाली औद्योगिक गतिविधियों के कारण इसे भारत का कुटी जापान यानी मिनी जापान भी कहा जाता है। शिवकाशी की सबसे बड़ी पहचान पटाखा उद्योग है। देश के 90% पटाखे यहीं बनते हैं। दीवारों पर लगे पोस्टर बताते हैं कि आप पटाखों की दुनिया में हैं। लेकिन इनमें से एक भी ‘ग्रीन पटाखों’ का पोस्टर नहीं है, क्याेंकि यहां बने पटाखों में 2% से भी कम ग्रीन पटाखे हैं। यहां 98% पटाखे पुराने फॉर्मूले से ही बनाए जा रहे हैं। दरअसल, यहां सिर्फ चार कंपनियों को ही इसका लाइसेंस दिया गया है। जिस केमिकल को प्रतिबंधित किया गया है, उसका ग्रीन विकल्प पोटेशियम पेरियोडेट 400 गुना महंगा है, जिसके चलते निर्माताओं ने कम ग्रीन पटाखे बनाए।

शिवकाशी में फिलहाल हर तरफ पटाखे ही दिख रहे हैं। दिवाली के चलते पटाखे सप्लाई करने का काम जोरों पर है। शिवकाशी में रजिस्टर्ड पटाखा निर्माताओं की संख्या 1070 हैं और छोटे-बड़े मिलाकर 1800 से लेकर 2000 इकाइयां पटाखे बनाती हैं। बीते वर्ष यहां पटाखों के व्यापार का टर्नओवर 6500 करोड़ रुपए रहा। सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी के बाद यह लगातार गिर रहा है। बीते पांच सालों में टर्नओवर 60 फीसदी कम हुआ है।

हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं

  • शिवकाशी में कंट्रोलर ऑफ एक्सप्लोसिव ऑफिसर डॉ. करुणामय पांडे बताते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों में इस्तेमाल होने वाले 6 केमिकल पर पाबंदी लगाई है। यह बेरियम नाइट्रेट, एंटीमोनी, लिथियम, मर्करी, आर्सेनिक और लेड हैं। इनमें बेरियम नाइट्रेट सबसे खतरनाक है और इस पर सख्ती से पाबंदी लगाने के लिए कहा गया है।’
  • श्रीबालाजी फायर वर्क्स के मालिक कनन कहते हैं ‘हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, इसलिए ग्रीन पटाखों का लाइसेंस लिया है, लेकिन सस्ते बेरियम नाइट्रेट के बिना ग्रीन पटाखे बनाना काफी महंगा होगा।’ कनन बताते हैं कि बेरियम नाइट्रेट के बिना ग्रीन पटाखे में केवल फुलझड़ी, अनार, पेंसिल, चकरी और लड़ी बनाए जा सकते हैं लेकिन इनकी मांग बहुत कम है। अगर यही नहीं बिके, तो नुकसान उठाना पड़ेगा। समस्या यह है कि 70 रुपए किलो के बेरियम नाइट्रेट की जगह 3000 रुपए किलो वाले पोटेशियम पेरियोडेट के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है। ऐसे में ग्रीन पटाखों का दाम इतना बढ़ जाएगा कि खरीदार नहीं मिलेंगे।
  • नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) की चीफ साइंटिस्ट डॉ. साधना रायालु बताती हैं कि ग्रीन पटाखों पर रिसर्च जारी है। शिवकाशी में 250 निर्माताओं ने फॉर्मूले के लिए आवेदन दिया था, जिनमें से 165 के साथ अनुबंध किया गया है। पेट्रोलियम, एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन (पेसो) से शिवकाशी के 4 निर्माताओं को लाइसेंस मिले हैं। इस पर शिवकाशी से कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर कहते हैं ‘लोकसभा चुनाव से पहले चार महीने तक पूरा शिवकाशी अदालत के फैसले के विरुद्ध बंद रहा है। इस साल कुछ भी साफ नहीं था कि कौन से पटाखे बनेंगे। नीरी ने जब फॉर्मूला दिया उस कम समय में ग्रीन पटाखे बन ही नहीं सकते थे।

इस बार खास होंगे ये पटाखे
शिवकाशी में ग्रीन पटाखों से अलग इस बार फैंसी पटाखों की नई रेंज पर काम किया गया है। मोरको जैसे आसमान में फटने वाले पटाखों की कई वैराइटी इस बार देखने को मिलेंगी। जैक एंड जिल, ग्लेजी बूम और जोडियक जिग्लर्स जैसे 100 शॉट्स वाले पटाखे भी पहले से ज्यादा शॉट्स के साथ मिलेंगे।

चिंता भविष्य की
शिवकाशी की सबसे पुरानी तमिलनाडु फायरवर्क्स, अमोर्सेस मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन के अध्यक्ष गणेशन शिवकाशी के भविष्य पर चिंतित है। इन्हें आशंका है कि ग्रीन पटाखों के चलते व्यापार खत्म होता है, तो आर्थिक और सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा। माइग्रेशन भी बढ़ेगा।



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शिवकाशी में पटाखा उद्योग से आठ लाख लाेगों को रोजगार मिलता है। फोटो: आर महेश कुमार


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