कांचीपुरम. मंदिरों का शहर कहे जाने वाले तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले से 15 किमी दूर अरासर कोइल में दुनिया की सबसे दुर्लभ लक्ष्मी प्रतिमा है। सुंदरा महालक्ष्मी के नाम से स्थापित इस मंदिर का इतिहास रामायण काल के समकक्ष है, क्योंकि इस मंदिर की स्थापना करने वालों में राजा जनक का भी नाम है। इस मंदिर में स्थापित माता लक्ष्मी की प्रतिमा दुनिया में एकमात्र ही मानी गई है, इसकी विशेषता है मूर्ति के सीधे पैर में पांच की बजाय 6 अंगुलियां होना, अंक ज्योतिष में 6 शुक्र का अंक माना गया है, शुक्र सभी तरह के ऐश्वर्य देने वाला ग्रह माना जाता है, इसलिए सुंदरा महालक्ष्मी को शुक्र की नियंत्रक देवी माना गया है।
सुंदरा महालक्ष्मी को 64 तरह की लक्ष्मियों में श्रेष्ठ माना जाता है। इन्हें 64 ऐश्वर्य देने वाला कहा गया है। कांचीपुरम जिले में मौजूद प्रमुख मंदिरों में इसे शुमार किया जाता है। इस मंदिर का 6 बार रिनोवेशन किया जा चुका है। मंदिर के मुख्य पुजारी पं. कन्नम भट्टाचार्य के मुताबिक मंदिर करीब 6500 साल पुराना है। आखिरी बार मंदिर का जीर्णोद्धार 2016 में किया गया था। दीपावली पर चतुर्दशी से लेकर तीज तक 5 दिन उत्सव मनाया जाता है। जिसमें देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की भी पूजा होती है। तालपुराण के मुताबिक कुबेर इस जगह स्वयं लक्ष्मी का पूजन करते हैं। इस मंदिर के साथ ही भगवान विष्णु का भी एक मंदिर है, जिसे कमल वरदराज के मान से जाना जाता है। ये मंदिर भगवान विष्णु के 108 दिव्यदेशम् में गिना जाता है।
- ब्रह्मा और विष्णु से जुड़ी है इस मंदिर की कहानी
दक्षिण भारतीय तालपुराण के मुताबिक ब्रह्मा धरती पर ब्रह्म भूमि की खोज करने आए थे। तब कांचीपुरम के पास समुद्र किनारे उन्हें भगवान विष्णु और राजा जनक दिखाई दिए। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को दूध मिली मिट्टी देकर उससे यज्ञकुंड स्थापित करने की सलाह दी। ब्रह्मा ने कांची के पास इससे यज्ञकुंड स्थापित किया। भगवान विष्णु और जनक ने यहां धन और धान्य की पूर्ति के लिए महालक्ष्मी की पूजा की। तभी से महालक्ष्मी यहां सुंदरा महालक्ष्मी के रुप में स्थापित हैं। शुक्र पर लक्ष्मी के नियंत्रण के कारण उनके सीधे पैर के पंजे में 6 अंगुलियां है। इस मंदिर और प्रतिमा का शिल्पकार देवशिल्पी विश्वकर्मा को माना जाता है।
- कमल के फूल पर विराजित हैं महालक्ष्मी
इस मंदिर में काले पत्थर से बनी महालक्ष्मी की प्रतिमा काफी सुंदर है। ये कमल के फूल पर पद्मासन अवस्था में बैठी हैं। दो हाथों में कमल के फूल हैं और एक हाथ वरदान मुद्रा में, दूसरा अभय मुद्रा में है। मूर्ति के गले में तुलसी की माला और हाथों में गहने और मस्तक पर सूर्य व चंद्रमा विराजित हैं।
- शुक्रवार को शुक्र के होरा में दर्शन का महत्व
इस मंदिर में शुक्रवार को विशेष अनुष्ठान होते हैं, इसमें लक्ष्मी और कुबेर के साथ शुक्र की भी पूजा होती है। ज्योतिषीय गणना करके अगर शुक्रवार को शुक्र के ही होरा में यानी ब्रह्म मुहूर्त में इस मंदिर में दर्शन किए जाएं तो सभी 64 तरह के ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है।
- विजयनगर साम्राज्य का अभिन्न अंग
दक्षिण भारत के सबसे बड़े राज्य विजय नगर के लिए ये मंदिर हमेशा से बहुत खास रहा है। यहां विजयनगर के चौल और अन्य राजाओं ने काफी अनुष्ठान किए हैं। इतिहास में इसे विजयनगर साम्राज्य के मुख्य मंदिरों में गिना गया है। यहां मौजूद शिलालेखों में विजयनगर सम्राटों का उल्लेख है।
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