Friday, October 18, 2019

2015 में अंबानी से अमीर बनने पर असहजता महसूस की थी: दिलीप संघवी

नई दिल्ली. मैग्नीफिसेंट एमपी में शिरकत कर रहे दिलीप संघवी ने 36 साल पहले पांच साथियों के साथ सन फार्मा नाम की दवा कंपनी की शुरुआत की थी। आज इस कंपनी की उपस्थिति 50 देशों में है। 32 हजार कर्मचारी इससे जुड़े हैं। साल 2015 में मार्केट वैल्यू के हिसाब के आधार पर दिलीप कुछ समय के लिए मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ भारत के सबसे धनी व्यक्ति भी बने थे। सन फार्मा को दुनिया की शीर्ष चार दवा कंपनियों में शुमार करने वाले संघवी ने दैनिक भास्कर के पवन कुमार से विभिन्न पहलुओं पर बातचीत की।

भास्कर: सन फार्मा को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी जेनेरिक फार्मा कंपनी बनाने में कैसे कामयाब हुए?
संघवी: सन फार्मा की प्रगति एक-एक कदम आगे बढ़ कर हुई है। इसमें कर्मचारियों की कड़ी मेहनत और लगन सबसे महत्वपूर्ण है। हमने 1983 में पांच लोगों से कंपनी शुरू की थी। आज हमारे साथ 32 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे बहुत प्रतिभाशाली और प्रतिबद्ध लोग मिले। मुझे गर्व है कि वर्ष-2019 में फोर्ब्स की सूची में सन फॉर्मा को जगह मिली।


भास्कर: आप 2015 में मुकेश अंबानी से बड़े भारतीय कारोबारी बने थे। तब आपकी क्या प्रतिक्रिया थी?
संघवी: 2015 से पहले फार्मा कारोबार के बाहर बहुत कम लोग ही मुझे जानते थे, भले ही उन्हें सन फार्मा के बारे में जानकारी रही होगी। लेकिन इसके बाद मेरे बारे में लोगों की दिलचस्पी पैदा हो गई। मैं उनकी निगाहों में आ गया था और इससे मैं बहुत असहज महसूस कर रहा था।

भास्कर: भारत सहित दुनियाभर की अर्थव्यवस्था सुस्ती के दौर से गुजर रही है। आपका क्या मानना है?
संघवी: पिछले कुछ वर्षों में भारतीय फार्मा उद्योग के विकास में अलग-अलग कारणों से गिरावट आई है। उद्योग मूल रुप से निर्यात पर निर्भर कर रहा है। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की कीमतों को लेकर पिछले तीन वर्षों से जबरदस्त दबाव है। क्योंकि खरीददार संगठित हो रहे हैं इसलिए कीमतों में प्रतिस्पर्धा आ रही है। सुस्ती के दौर में भारतीय दवा उद्योग भी आर्थिक अस्थिरता के दौर गुजर रहा है।

भास्कर: सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?
संघवी: जैसे-जैसे फार्मा उद्योग का प्रोडक्ट पोर्टफोलियो कांप्लेक्स और विशेषज्ञता की ओर बढ़ेगा उसी हिसाब से अत्यंत कुशल लोगो की मांग बढ़ेगी। सरकार प्रतिभा का पूल बनाने में मदद कर सकती है जो इन विशेष उत्पादों को बनाने में कुशल हो।आधुनिक इकोसिस्टम को बढ़ावा देने की जरूरत है जिसमें शोध और विकास को बढावा मिले। भारत को लाइफ साइंस का केंद्र बनाने के लिए इसकी जरूरत है। इसके अलावा उद्योग को सरकार की ओर से सहयोगी नियमन वातावरण देने की आवश्यकता है। सरकार को हेल्थकेयर प्रोग्राम में तेजी लानी होगी ओर इसके लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी के सहारे हेल्थकेयर ढांचे को मजबूत करना होगा।

भास्कर: आपको घाटे में चल रही कंपनियों को खरीद कर उनकी कायापलट करने का माहिर माना जाता है, क्या ये आपकी कोई बिजनेस स्ट्रैटजी है?
संघवी: हमारे अधिग्रहण, कम और ऊंची कीमतों का मिश्रण रहे हैं। हमारे आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार कुछ मामलों में अधिग्रहण महंगे साबित हुए लेकिन हमें कामयाबी मिली और कुछ मामलों में उलट बात साबित हुई। अधिग्रहण से पहले हम इस बात का आकलन करने में बहुत समय लगाते हैं कि हम कंपनी बनाएं या खरीदें। अगर हमें लगता है कि खुद की कंपनी खड़ी करना उचित है तो हम वह रास्ता अपनाते हैं। हमारा बुनियादी दर्शन यह रहा है कि कंपनी को मूल्यवान बनाएं और उसकी तरक्की करें।

भास्कर: रेनबैक्सी का कायापलट कैसे किया?
संघवी: मेरा ऐसा मानना है कि जीवन में हर आदमी आगे बढ़ना और सफल होना चाहता है और इसके लिए कड़ी मेहनत करता है। लोगों को सिर्फ सहयोग, सलाह और दिशा की जरूरत होती है। रेनबेक्सी में जबरदस्त प्रतिभाशाली लोग थे।

भास्कर: जेनेरिक दवा के बारे में आपकी क्या राय है? जेनेरिक दवा पर लोगों का भरोसा कम क्यों है?
संघवी: मैं इससे सहमत नहीं हूं कि जेनेरिक दवा में लोगों का विश्वास नहीं है। अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे सख्त कानूनों के दायरों में काम रहे बाजारों में भी जेनेरिक दवा का हिस्सा 60 से 80 फीसदी है और ये प्रोडक्ट कड़े क्वालिटी मानकों पर खरे हैं। जैसे-जैसे सरकारें हेल्थकेयर का बोझ कम करने की दिशा में काम कर रही है वैसे-वैसे जेनेरिक दवा का बाजार और बढ़ेगा।

भास्कर: धारणा है कि दवा कंपनियां ग्राहकों से मनमाना कीमत वसूल करती हैं। ब्रांड बदलने से एक ही दवा की कीमत कई गुना बढ़ जाती है। ऐसा क्यों?
संघवी: मुझे ऐसे किसी प्रोडक्ट की जानकारी नहीं है जिसकी कीमत हजार गुना बढ़ गई हो। भारत में दवाओं की कीमतें दुनिया में सबसे कम हैं। सरकार ने सुनिश्चित किया है कि जरूरी दवाएं कम कीमत पर मिले और इन दवाओं को ड्रग कंट्रोल प्राइस ऑर्डर में शामिल किया गया है। मुझे लगता है कि फार्मा कंपनियों, सरकार और नियामक एजेंसियों को देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के लए काम करना होगा।

भास्कर: अक्सर किसी उद्योगपति को उसकी नेट वर्थ से बड़ा या छोटा आंका जाता है। इस तरह के मूल्यांकन को किस रूप में देखते हैं?
संघवी: किसी कंपनी के शेयरों की कीमत घटती-बढ़ती रहती है। मेरे हिसाब से किसी कंपनी को इस बात से आंकना चाहिए कि उससे जुड़े लोगों का जीवन वह कैसे प्रभावित करती है। समाज के प्रति उसकी प्रतिबद्धता क्या है, वह अपने कर्मचारियों का ख्याल कैसे रखती है।

भास्कर: आपने 1997 में पहली बार एक अमेरिकी कंपनी का अधिग्रहण किया, विदेशी कंपनियों की खरीदारी के क्या अनुभव रहे?
संघवी: समय के साथ के हम बड़ी कंपनियों को एकीकृत करने की क्षमता हासिल करने में माहिर हो गए हैं। मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि कर्मचारियों को बहुत बड़े ख्वाब न दिखाएं बल्कि उन्हें कंपनी का हिस्सा बनाएं। यही हमारी उनके लिए सबसे बड़ी हौसला अफजाई है।



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दिलीप संघवी। -फाइल फोटो


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