Wednesday, October 16, 2019

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज आखिरी दिन, 39 दिन में हिंदू-मुस्लिम पक्ष ने 6 प्रमुख बिंदुओं पर दलीलें रखीं

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज आखिरी दिन, 39 दिन में हिंदू-मुस्लिम पक्ष ने 6 प्रमुख बिंदुओं पर दलीलें रखीं
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज आखिरी दिन, 39 दिन में हिंदू-मुस्लिम पक्ष ने 6 प्रमुख बिंदुओं पर दलीलें रखीं

नई दिल्ली. अयोध्या विवाद पहली बार 1885 में कोर्ट में पहुंचा था। निर्मोही अखाड़ा 134 साल से जमीन पर मालिकाना हक मांग रहा है। सुन्नी वक्फ बोर्ड भी 58 साल से यही मांग कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई थी। अब 8 साल बाद बुधवार को अयोध्या विवाद मामले में सुनवाई का संभवत: आखिरी दिन होगा। हिंदू और मुस्लिम पक्ष की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट अब 4 या 5 नवंबर को फैसला सुना सकता है। अब तक की सुनवाई में विवादित भूमि के मालिकाना हक से लेकर रामलला विराजमान को न्यायिक व्यक्ति मानने के मुद्दे तक 6 प्रमुख बिंदुओं पर दोनों पक्षों ने दलील रखी है।

अब तक की सुनवाई में 6 प्रमुख बिंदुओं पर हिंदू-मुस्लिम पक्ष की दलीलें

ayodhya


1) मालिकाना हक
हिंदू पक्ष :
हिंदू पक्ष ने ही कोर्ट से विवादित 2.77 एकड़ की जमीन का मालिकाना हक उन्हें दिए जाने की मांग की है। निर्मोही अखाड़ा ने दलील दी कि विवादित जमीन हमारे पास 100 साल से भी ज्यादा समय से है। भले ही अखाड़ा 19 मार्च 1949 से रजिस्टर्ड है, लेकिन इसका इतिहास पुराना है। मुस्लिम लॉ के तहत कोई भी व्यक्ति जमीन पर कब्जे की वैध अनुमति के बिना दूसरे की जमीन पर मस्जिद का निर्माण नहीं कर सकता। इस तरह जमीन पर जबरन कब्जा करके बनाई गई मस्जिद गैर इस्लामिक है और वहां पर अदा की गई नमाज कबूल नहीं होती है। रामलला विराजमान की तरफ से दलील दी गई कि कानून की तय स्थिति में भगवान हमेशा नाबालिग होते हैं और नाबालिग की संपत्ति न तो छीनी जा सकती है, न ही उस पर विरोधी कब्‍जे का दावा किया जा सकता है।


मुस्लिम पक्ष : सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दलील दी कि हिंदू पक्ष सिर्फ अपने विश्वास के आधार पर विवादित जगह के मालिकाना हक की बात कर रहे हैं। दलील एक उपन्यास पर आधारित है। राम पूजनीय हैं, लेकिन उनके नाम पर किसी स्थान पर मालिकाना हक का दावा नहीं किया जा सकता। हिंदू सूर्य की भी पूजा करते हैं, लेकिन उस पर मालिकाना हक नहीं जता सकते। अखाड़े का दावा बनता ही नहीं। 22-23 दिसंबर 1949 को विवादित जमीन पर रामलला की मूर्ति रखे जाने के करीब दस साल बाद 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने सिविल सूट दायर किया था, जबकि सिविल सूट दायर करने की समय सीमा 6 साल थी। निर्मोही अखाड़ा सिर्फ सेवादार है, जमीन का मालिक नहीं।

2) पूजा/ इबादत
हिंदू पक्ष : दलील दी कि विवादित जगह पर मुस्लिमों ने 1934 से पांचों वक्त की नमाज पढ़ना बंद कर दिया था। 16 दिसंबर 1949 के बाद वहां जुमे की नमाज पढ़ना भी बंद हो गई। इसके बाद 22-23 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे के अंदर मूर्तियां रखी गईं। हिंदू धर्म में किसी जगह की पूजा के लिए वहां मूर्ति होना जरूरी नहीं। हिंदू तो नदियों और सूर्य की भी पूजा करते हैं।

मुस्लिम पक्ष : हिंदू पक्षकारों की उस दलील का खंडन किया, जिसमें कहा गया था कि 1934 के बाद विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी गई। यह भी कहा कि हिंदू पक्षकारों ने अयोध्या में लोगों द्वारा परिक्रमा करने की दलील दी है। परिक्रमा पूजा का एक रूप है, लेकिन यह सबूत नहीं कि वह स्थान राम जन्मभूमि ही है। परिक्रमा भी बाद में शुरू हुई। इसका कोई सबूत नहीं है कि पहले वहां लोग रेलिंग के पास जाते थे और गुंबद की पूजा करते थे। पहले गर्भगृह में मूर्ति की पूजा का भी कोई सबूत नहीं है।


3) ढांचा
हिंदू पक्ष :
सुप्रीम कोर्ट ने जब पूछा कि अयोध्या में राम मंदिर बाबर ने तुड़वाया था या औरंगजेब ने? हिंदू पक्ष ने कहा कि इस बारे में लिखित तथ्यों में भ्रम है। इसमें कोई भ्रम नहीं कि राम अयोध्या के राजा थे और वहीं जन्मे थे। कोर्ट ने पूछा- क्या सबूत है कि मंदिर तुड़वाने के बाद बाबर ने ही मस्जिद बनाने का आदेश दिया था? हिंदू पक्ष ने जवाब दिया कि इसका सबूत इतिहास में दर्ज शिलालेख है। विवादित जगह पर ईसा पूर्व बना विशाल मंदिर था। इसके खंडहर को बदनीयती से मस्जिद में बदल दिया गया था। राम जन्म स्थान पर नमाज इसलिए पढ़ी जाती रही, ताकि जमीन का कब्जा मिल जाए।

मुस्लिम पक्ष : दलील दी कि मस्जिद के केंद्रीय गुंबद को भगवान राम का जन्मस्थान बताने की कहानी 1980 के बाद गढ़ी गई। अगर वहां मंदिर था तो वह किस तरह का मंदिर था। गवाहों द्वारा मंदिर को लेकर दिए गए बयान अविश्वसनीय हैं। गर्भगृह में 1939 में मूर्ति नहीं थी। वहां पर बस एक फोटो थी।बाहरी राम लला के चबूतरे पर हमेशा मूर्तियों को पूजा जाता था और 1949 में मूर्तियों को भीतर आंगन में स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद ये पूरी जमीन पर अपने कब्जे की बात करने लगे।


4) दस्तावेज
हिंदू पक्ष :
कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से जब विवादित भूमि पर स्वामित्व साबित करने के लिए राजस्व रिकॉर्ड और अन्य सबूत मांगे। तब अखाड़े ने जवाब दिया कि 1982 में हुई डकैती में दस्तावेज चोरी हो गए थे। रामलला विराजमान की ओर से दलील दी गई कि दस्तावेजों के जरिए साबित करना मुश्किल है कि भगवान राम कहां पैदा हुए थे। लाखों श्रद्धालुओं की अडिग आस्था और विश्वास ही इसका सबूत है कि विवादित स्थल राम जन्मभूमि है। राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने बाबरनामा और तुज्क-ए-बाबरी नामक किताबों के गायब पन्नों के बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निष्कर्ष को पढ़कर बताया कि केवल 935 हिजरी (1528 ईसवीं) के 3 दिनों से संबंधित पेज गायब हैं। शिलालेख यह बताते हैं कि मस्जिद की नींव 935 हिजरी में रखी गई। बाबरनामा में किसी मीर बाकी नाम के व्यक्ति का जिक्र नहीं है। भगवान राम का प्राचीन मंदिर बाबर ने नहीं बल्कि औरंगजेब ने तोड़ा था।

मुस्लिम पक्ष : दलील दी कि बाबरनामा के अनुसार मस्जिद को बाबर के आदेश पर उसके कमांडर मीर बाकी ने बनवाया था। तीन शिलालेखों में भी इसका जिक्र है। इन शिलालेखों पर हिंदुओं ने आपत्तियां जरूर उठाई हैं। लेकिन यह सही नहीं, क्योंकि इनका जिक्र विदेशी यात्रियों के वर्णन और गजेटियरों में है। इतिहासकार विलियम फॉस्टर ने विवादित जगह पर मस्जिद की बात कही है। प्राचीन कथाओं में भी कहा गया है कि भगवान राम की मां कौशल्या अपने मायके गई थीं और वहीं पर उन्होंने राम को जन्म दिया था। ऐसे में अयोध्या राम का जन्मस्थान हो यह भी जरूरी नहीं।


5) रामलला पक्ष हैं या नहीं?
हिंदू पक्ष :
रामलला के वकील के परासरन ने दलील दी कि हिंदू एक रूप में देवताओं को नहीं पूजते। उन्हें ईश्वरीय अवतार मानते हैं। इनका कोई रूप और आकार नहीं है। महत्वपूर्ण देवता है, उसकी छवि या रूप नहीं। भगवान राम का अस्तित्व और उनकी पूजा जन्मस्थान पर मूर्ति स्थापना और मंदिर निर्माण से भी पहले से है। केदारनाथ में मूर्ति नहीं, शिला पूजा होती है। मूर्ति न्यायिक व्यक्ति मानी जाती है। वह प्रापर्टी रखने में सक्षम है। देवता जीवित प्राणी की तरह माने जाते हैं। विवादित संपत्ति खुद में एक देवता है और भगवान राम का जन्मस्थान है। इसका कोई सवाल नहीं उठता कि कोई वहां मस्जिद बनाए और उस जगह पर जबरन कब्जे का दावा करे। विवादित भूमि पर मंदिर रहा हो या न हो, मूर्ति हो या न हो.. यह साबित करने के लिए लोगों की आस्था होना काफी है कि वहीं रामजन्म स्थान है।

मुस्लिम पक्ष : जन्मस्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं हो सकता। ये याचिका जानबूझकर लगाई गई हैं ताकि इसपर लॉ ऑफ लिमिटेशन और एडवर्स पोजीशन के सिद्धांत लागू न हो सकें।


6) साक्ष्य
हिंदू पक्ष : रामलला विराजमान की तरफ से दलील दी गई- विवादित स्थल की खुदाई में निकले पत्थरों पर मगरमच्छ और कछुओं के चित्र भी बने थे। मगरमच्छ और कछुओं का मुस्लिम संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। राम जन्मभूमि के दर्शन के लिए श्रद्धालु सदियों से अयोध्या जाते रहे हैं। कोर्ट में पेश पुराने सभी तथ्य और रिकॉर्ड से साबित होता है कि यह भगवान राम का जन्म स्थान है। राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने पैगंबर मोहम्मद का हवाला देकर कहा कि कब्र की ओर चेहरा करके नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है, जबकि बाबरी मस्जिद के आसपास कई कब्र थीं। मस्जिद को खानपान की जगह के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकते। बाबरी मस्जिद की खुदाई में चूल्हा मिला था। पैगंबर ने कहा था कि घंटी बजाकर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती, क्योंकि यह शैतान का इंस्ट्रूमेंट है। हिंदुओं के नरसिंह पुराण में कहा गया है कि बिना घंटी बजाए मंदिर में पूजा नहीं कर सकते।

मुस्लिम पक्ष : सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि विवादित स्थल पर मंदिर का कोई सबूत नहीं है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग भी यह साबित नहीं कर पाया है। राम चबूतरे का भी कहीं कोई साक्ष्य नहीं है कि ये कब अस्तित्व में आया। मस्जिद के संबंध में ऐसे साक्ष्य हैं। राम चबूतरा हिंदुओं के कब्जे में 1721 से है।

अयोध्या विवाद : 1526 से अब तक

1526 : इतिहासकारों के मुताबिक, बाबर इब्राहिम लोदी से जंग लड़ने 1526 में भारत आया था। उसका एक जनरल अयोध्या पहुंचा और उसने वहां मस्जिद बनाई। बाबर के सम्मान में इसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया।
1853 : अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। हिंदू समुदाय ने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई।
1885 : फैजाबाद की जिला अदालत ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की महंत रघुबीर दास की अर्जी ठुकराई।
1949 : विवादित स्थल पर सेंट्रल डोम के नीचे रामलला की मूर्ति स्थापित की गई।
1950 : हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की।
1959 : निर्मोही अखाड़े ने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताया।
1961 : सुन्नी वक्फ बोर्ड (सेंट्रल) ने मूर्ति स्थापित किए जाने के खिलाफ कोर्ट में अर्जी लगाई और मस्जिद व आसपास की जमीन पर अपना हक जताया।
1981 : उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने जमीन के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।
1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति बरकरार रखने को कहा।
1992 : अयोध्या में विवादित ढांचा ढहा दिया गया।
2002 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित ढांचे वाली जमीन के मालिकाना हक को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
2010 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2:1 से फैसला दिया और विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बराबर बांट दिया।
2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की इजाजत मांगी।
2018 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद को लेकर दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
6 अगस्त 2019 : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर हिंदू और मुस्लिम पक्ष की अपीलों पर सुनवाई शुरू की।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Ayodhya Case : Last day hearing for disputed land between Hindu and Muslim
Ayodhya Case : Last day hearing for disputed land between Hindu and Muslim


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/33AmMUg
via IFTTT
via Blogger https://ift.tt/2IVgNBF
October 16, 2019 at 07:31AM
via Blogger https://ift.tt/2MLMvlP
October 16, 2019 at 09:52AM

Related Posts:

0 comments:

Post a Comment

Blog Archive

Web Resource

Total Pageviews

266,354
Copyright Design jitu it's222. Powered by Blogger.

Text Widget