
नई दिल्ली. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में भारत को मंगलवार को विजयादशमी के मौके पर फ्रांस से पहला राफेल लड़ाकू विमान मिल जाएगा। हालांकि, यह मई 2020 तक भारत आएगा। तब तक भारतीय वायुसेना के पायलट फ्रांस में ही इसे उड़ाने की ट्रेनिंग लेंगे। पूर्व वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने हाल ही में कहा था कि राफेल के आने के बाद पाकिस्तान नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आने की कोशिश नहीं करेगा। इसकी खूबियों को जानने के लिए भास्कर APP ने वायुसेना के फाइटर पायलट रहे पूर्व ग्रुप कैप्टन किशोर कुमार खेरा और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े रक्षा विशेषज्ञ पूषन दास से बातचीत की। अगर रफ्तार के मामले में पाकिस्तान का एफ-16 आगे है, तो राफेल की हथियार प्रणाली उसे पाकिस्तानी लड़ाकू विमान के मुकाबले ज्यादा ताकतवर बनाती है।
इन तीन वजहों से राफेल मजबूत
1) रडार वह पहली खूबी जो राफेल को पाकिस्तान के एफ-16 के मुकाबले ताकतवर बना देती है
फ्रांसीसी कंपनी दैसो एविएशन ने राफेल में ऐसा रडार सिस्टम दिया है, जो अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन के बनाए एफ-16 में भी नहीं है। एफ-16 का रडार सिस्टम 84 किमी के दायरे में 20 टारगेट को डिटेक्ट कर सकता है। रफाल का रडार सिस्टम 100 किमी के दायरे में एक बार में एकसाथ 40 टारगेट डिटेक्ट कर सकता है। इस बारे में भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट रहे किशोर खेरा बताते हैं कि ऑन बोर्ड रडार और सेंसर की जो रेंज राफेल के पास है, वह फिलहाल भारत के किसी अन्य लड़ाकू विमान में नहीं है। यह बहुत दूर से दुश्मन के लड़ाकू विमानों को डिटेक्ट कर सकता है। इसकी ज्यादा रेंज कॉम्बैट मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसका फायदा यह है कि आप दुश्मन के विमान में डिटेक्ट हुए बिना ही उन्हें देख सकते हैं।
2) मिसाइलें भी पाकिस्तान के एफ-16 से बेहतर
पाकिस्तान के एफ-16 में लगने वाली एमराम मिसाइलों की रेंज अधिकतम 100 किमी है। वहीं, राफेल का मिसाइल सिस्टम इससे कहीं एडवांस है। वायुसेना में ग्रुप कैप्टन रहे किशोर खेरा बताते हैं कि वैसे तो भारत के सभी लड़ाकू विमान हवा से हवा और हवा से जमीन पर सटीक निशाना साधने वाले हथियारों को ले जाने में सक्षम हैं, लेकिन राफेल में खास बात यह है कि यह ज्यादा रेंज वाले हथियारों को भी ले जा सकता है। जैसे- यह मीटिअर मिसाइलों को कैरी कर सकता है, जो 150 किमी से ज्यादा दूरी पर भी हवा में मूव कर रहे टारगेट पर बेहद सटीक निशाना लगाने में सक्षम हैं। मीटिअर मिसाइलें जेट से लेकर छोटे मानव रहित विमानों के साथ-साथ क्रूज मिसाइलों को भी निशाना बना सकती हैं। इसी तरह राफेल विमान स्कैल्प मिसाइलों को भी ले जा सकता है। ये मिसाइलें करीब 300 किलोमीटर दूर जमीन पर स्थित किसी भी टारगेट को नष्ट कर सकती हैं। ये मिसाइलें विमान को जमीन से निशाना साध रहे हथियारों से भी सुरक्षित रखती हैं। इस तरह एक लड़ाकू विमान में लंबी रेंज वाली मिसाइलें उसे दुश्मन के हमले से तो सुरक्षित रखती ही हैं, साथ ही मिशन को सफलता दिलाने में भी इनका बड़ा रोल होता है।
3) ह्यूमन मशीन इंटरफेस ऐसा कि फाइटर पायलट जल्द फैसला ले सकता है
किशोर खेरा कहते हैं कि राफेल का ह्यूमन मशीन इंटरफेस भी तकनीकी रूप से इसे अन्य विमानों से ज्यादा सक्षम बनाता है। यह फाइटर पायलट के लिए बेहद मददगार है। पायलट के लिए राफेल में लगे अलग-अलग तरह के सेंसर जंग के समय स्थिति को आसानी से और बेहतर तरीके से समझने में मददगार साबित होंगे। इससे निर्णय लेने में कम समय लगता है। निर्णय लेने का मामला कुछ माइक्रोसेकंड का ही होता है, लेकिन ये माइक्रोसेकंड ही हवाई लड़ाई में जीत और हार का अंतर बनते हैं।
सुखोई, मिराज और तेजस का साथ राफेल को और ताकतवर बनाएगा
भारतीय वायुसेना में राफेल के ऑपरेशनल होते ही हमारी ताकत में इजाफा होगा। खेरा बताते हैं कि किसी भी ऑपरेशन या सीमित या पूर्ण युद्ध की स्थिति में राफेल हमारा सबसे खास विमान होगा। हालांकि, महज 36 राफेल एक पूर्ण युद्ध की तैयारी के मकसद से पर्याप्त नहीं हैं। सुखोई-30 एमकेआई, अपग्रेडेड मिराज 2000, मिग-29 और तेजस भी अलग-अलग विशेष तकनीकों से लैस हैं, जिनका साथ राफेल के लिए जरूरी होगा। जमीनी लक्ष्यों को भेदने में मिग-21 और मिग-27 के बाद राफेल के साथ जगुआर हमारे लिए सबसे जरूरी विमान होगा।
भारत, चीन और पाकिस्तान के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमानों की तुलना
राफेल (भारत) |
एफ-16 (पाकिस्तान) |
जे-20 (चीन) |
|
कॉम्बैट रेडियस |
1850 किमी |
4220 किमी |
3400 किमी |
मैक्जिमम स्पीड |
2222 किमी/घंटा |
2415 किमी/घंटा |
2100 किमी/घंटा |
डायमेंशन |
लंबाई : 15.3 मीटर चौड़ाई : 10.9 मीटर ऊंचाई : 5.3 मीटर |
लंबाई : 15 मीटर चौड़ाई : 9.45 मीटर ऊंचाई : 5 मीटर |
लंबाई : 23 मीटर चौड़ाई : 15 मीटर ऊंचाई : 5 मीटर |
मिसाइलें और रेंज |
मीटिअर : 150 किमी स्कैल्प : 300 किमी |
एमराम : 100 किमी |
पीएल-15 : 300 किमी पीएल-21 : 400 किमी |
कितनी ऊंचाई तक उड़ सकता है |
15,240 मीटर |
15,235 मीटर |
18000 मीटर |
रेट ऑफ क्लाइंब |
18,288 मीटर/मिनट |
15,240 मीटर/मिनट |
18,240 मीटर/मिनट |
वजन |
खाली- 9,980 किलो ग्राम, अधिकतम- 24,494 किलोग्राम |
खाली- 9,500 किलोग्राम, अधिकतम- 24,500 किलोग्राम |
खाली -17,600 किलोग्राम, अधिकतम- 35,000 किलोग्राम |
इस्तेमाल |
अफगानिस्तान, लीबिया और इराक में |
1986 से 1989 के दौरान अफगान युद्ध में |
अब तक किसी बड़े मिशन में शामिल नहीं |
चीन के जे-20ए विमान को भी ध्यान रखना होगा
रक्षा विशेषज्ञ पूषन दास कहते हैं कि पाकिस्तानी वायुसेना के सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान एफ-16 के मुकाबले राफेल में किसी भी सुरक्षित एयरस्पेस को भेदने की क्षमता ज्यादा है। हालांकि चीन के जे20ए विमान राफेल के लिए चुनौती होंगे, क्योंकि आने वाले सालों में वह बड़ी संख्या में इन विमानों को वायुसेना में शामिल करेगा। पाकिस्तान को भी चीन से ये विमान मिल सकते हैं, ऐसे में इन्हें काउंटर करने के लिए राफेल के साथ-साथ भारतीय वायुसेना को बड़े पैमाने पर क्षमताएं बढ़ानी होंगी।
ट्रेनिंग : पायलट 6 महीने में 60 से 80 घंटे राफेल उड़ाएंगे
खेरा बताते हैं कि विमान के सभी पहलुओं को समझने के लिए भारतीय पायलटों को कम से कम 5 से 6 महीने की ट्रेनिंग लेनी होगी। इस दौरान वे 60 से 80 घंटे राफेल उड़ाएंगे। फ्रांस में भारतीय पायलटों की ट्रेनिंग और अन्य कर्मचारियों की मेंटेनेंस ट्रेनिंग खत्म होने के बाद 4 लड़ाकू विमानों का पहला बेड़ा अगले साल मई में भारत को मिल जाएगा। उम्मीद है कि 2020 में वायुसेना दिवस तक कम से कम एक राफेल स्क्वाड्रन भारत में पूरी तरह से ऑपरेशनल हो जाएगी।
चौथी पीढ़ी के विमानों को अपडेट करना, तेजस को नई क्षमताओं से लैस करना भी जरूरी
रक्षा विशेषज्ञ पूषन दास कहते हैं कि राफेल के आने से भारतीय वायुसेना को ताकत तो मिलेगी लेकिन चीन और पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम और लड़ाकू विमानों की चुनौतियों का जवाब देने के लिए इसके अलावा भी अन्य विकल्पों पर काम करना होगा। हवाई लड़ाइयों की जरूरतों और अपने बेड़े के स्टैंडर्डाइजेशन (मानकीकरण) के लिए हर एक विकल्प पर विचार करना चाहिए। जैसे- राफेल की दूसरी बैच आने के साथ-साथ देशी तकनीकों से बने लड़ाकू विमान तेजस को भी जरूरी क्षमताओं से लैस करना होगा। जैसे इसे हवा में रिफ्यूल करने की क्षमता और इसके हवाई चेतावनी व नियंत्रण प्रणाली को और मजबूत करने की तकनीकी क्षमताएं विकसित करनी होगी। यह भी जरूरी है कि चौथी पीढ़ी के लड़ाकों विमानों को प्राथमिकता के साथ अपडेट किया जाए। इन्हें तेज गति से मार करने वाले हथियार और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर की आधुनिक क्षमताओं से लैस किया जाए।
वायुसेना के पास अभी 31 स्क्वाड्रन, 42 की जरूरत
ग्लोबल सिक्योरिटी डॉट ओआरजी के मुताबिक, वायुसेना को पाकिस्तान-चीन से देश की सुरक्षा के लिए 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है, लेकिन इस वक्त हमारे पास सिर्फ 31 स्क्वाड्रन ही मौजूद हैं। एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 लड़ाकू विमान शामिल होते हैं। अनुमान के मुताबिक, 2021-2022 तक वायुसेना के पास स्क्वाड्रन की संख्या घटकर 26 हो जाएगी, क्योंकि मिग-21 और मिग-27 जैसे लड़ाकू विमान रिटायर हो जाएंगे। वहीं, 2022 तक हमारे पास सिर्फ दो स्क्वाड्रन बढ़ेंगी। इनमें पहली स्क्वाड्रन राफेल विमान की होगी, जबकि दूसरी एलसीए तेजस की होगी। वहीं, अनुमान है कि 2022 तक पाकिस्तान की वायुसेना के पास 25 स्क्वाड्रन और चीनी वायुसेना के पास 42 स्क्वाड्रन होंगी।
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